Ghazal By Kabir Alam
बिहार के हाजीपुर के प्रसिद्ध समाजिक कार्यकर्ता और "नई रौशनी" समाजसेवी संस्था के संस्थापक कबीर आलम की गज़ल "इतना भी प्यार मत कर ज़माने की रफ्तार से"
#गज़ल
इतना भी प्यार मत कर ज़माने की रफ़्तार से,
माना के तेरा शौक-ए-ज़ुनू है इन्तेहा से बढ़कर,
पर खुद को बचा के रख उन मुस्कुराते अय्यार से,
पुरनम निगाहें लबों पर है शहद सी मिठास
लगता नही डर तुमको इन दो धारी तलवार से,
इतना भी प्यार मत कर ज़माने की रफ़्तार से,
माना के तेरा शौक-ए-ज़ुनू है इन्तेहा से बढ़कर,
पर खुद को बचा के रख उन मुस्कुराते अय्यार से,
पुरनम निगाहें लबों पर है शहद सी मिठास
लगता नही डर तुमको इन दो धारी तलवार से,
उनका सजना-सँवरना है किसी और के लिए,
आईना भी शर्माती है दिखावे के श्रींगार से
देखा है कभी तुमने वो अमरलता की पेंचें
किस तरह लिपट जाती है फ़ुल और ख़ार से,
आह.... कितना मासुम है कबीर तु समझ न सका,
खा गया धोखा उनके झुठे ऐतबार से,
इतना भी प्यार मत कर ज़माने की रफ़्तार से।
कबीर आलम हाजीपुरी की कलम से।
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