बिहार में "चमकी बुखार" मासुम ज़िन्दगियाँ छिन रही है फिर भी सरकार सुस्त क्यों है? जाने अब तक कितनी मासुम ज़िन्दगियाँ छिन गई।
बिहार के मुज़फ्फरपुर और आस पास के इलाके में चमकी बुखार या इंफ्लेसाइटिस ने अपना रौद्र रुप धारण कर लिया है, अब तक 95 से ज़्यादा मासुम बच्चों को अपनी ज़िन्दगी गवानी पड़ी है।
गौरतलब है कि बिहार में चमकी बुखार का असर साल 2014 से ही देखने को मिल रहा है, एक चाईल्ड राईट एक्टिविस्ट के अनुसार 2014 से अब तक 1000 से ज़्यादा बच्चों की जान चमकी बुखार की वजह से जा चुकी है। हर साल बच्चों की जान चमकी बुखार की वजह से जा रही है और बिहार सरकार को इस बात का पता भी है की इस मौसम में चमकी बुखार का असर होता है लेकिन फिर भी सरकार का कोई प्रीप्लान अब तक नज़र नही आया।
केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे ने कहा की लीची के मौसम में ऐसा होता है, बच्चे खाली पेट लीची खा लेते हैं जिससे चमकी बुखार का असर बढ़ जाता है। चौबे सर हम यही कहना चाहते हैं कि बच्चे तो बच्चे हैं गलतियाँ करेगें ही सरकार को इस के लिए पहले से ही तैयार रहना चाहिए था। खैर मुद्दे की बात ये है कि अस्पताल में भी प्रयाप्त सुविधा उपलब्ध नही है, बिमार बच्चों को अस्पताल में जमीन पर ही सोते हुए पाया गया है। इमरजेंसी हालात से निपटने के लिए प्रयाप्त एम्बुलेंस की भी सुविधा मुज़फ्फरपुर के अस्पताल में उपलब्ध नही है।
गौरतलब है कि बिहार में चमकी बुखार का असर साल 2014 से ही देखने को मिल रहा है, एक चाईल्ड राईट एक्टिविस्ट के अनुसार 2014 से अब तक 1000 से ज़्यादा बच्चों की जान चमकी बुखार की वजह से जा चुकी है। हर साल बच्चों की जान चमकी बुखार की वजह से जा रही है और बिहार सरकार को इस बात का पता भी है की इस मौसम में चमकी बुखार का असर होता है लेकिन फिर भी सरकार का कोई प्रीप्लान अब तक नज़र नही आया।
केन्द्रीय मंत्री अश्वनी चौबे ने कहा की लीची के मौसम में ऐसा होता है, बच्चे खाली पेट लीची खा लेते हैं जिससे चमकी बुखार का असर बढ़ जाता है। चौबे सर हम यही कहना चाहते हैं कि बच्चे तो बच्चे हैं गलतियाँ करेगें ही सरकार को इस के लिए पहले से ही तैयार रहना चाहिए था। खैर मुद्दे की बात ये है कि अस्पताल में भी प्रयाप्त सुविधा उपलब्ध नही है, बिमार बच्चों को अस्पताल में जमीन पर ही सोते हुए पाया गया है। इमरजेंसी हालात से निपटने के लिए प्रयाप्त एम्बुलेंस की भी सुविधा मुज़फ्फरपुर के अस्पताल में उपलब्ध नही है।
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