राजस्थान में नई भू-जल योजना, राजस्थान सरकार ने लिया बड़ा निर्णय, इस योजना के लागु होने के बाद पेयजल एवं घरेलू उपयोग के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वैयक्तिक घरेलू उपभोक्ता, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति योजनाओं, सशस्त्र बलों के प्रतिष्ठानों, कृषि कार्यकलापों और 10 घन मीटर प्रतिदिन से कम भू-जल निकासी करने वाले सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के उपयोग के लिए भू-जल निकासी के लिए एनओसी नहीं लेनी होगी।
राजस्थान , 7 दिसम्बर : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर हुई राज्य मंत्रिमण्डल की बैठक में 5 विभिन्न श्रेणियों में भू-जल दोहन के लिए एनओसी से छूट देने, आमजन को खनिज बजरी के विकल्प के रूप में एम-सेण्ड उपलब्ध कराने के लिए नीति के अनुमोदन सहित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस दौरान प्रदेश में कोविड-19 महामारी पर नियंत्रण के लिए टीकाकरण अभियान की तैयारियों पर भी चर्चा की गई। मंत्रिमण्डल ने वैक्सीनेशन के लिए भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप प्रदेश में वैक्सीन के बेहतर प्रबंधन, कोल्डचेन और स्टोरेज व्यवस्था, प्राथमिकता के निर्धारण और मानव संसाधन की उपलब्धता आदि विषयों पर भी गहन विचार-विमर्श किया।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने सोशल मिडिया अकाउण्ट पर जानकारी साझा करते हुए कहा कि मंत्रिमण्डल ने भू-जल दोहन के लिए जारी दिशा-निर्देशों के क्रम में एक बड़ा निर्णय करते हुए पांच श्रेणियों में भू-जल निकासी के लिए एनओसी के प्रावधान को विलोपित करने का निर्णय किया है। इस निर्णय के बाद पेयजल एवं घरेलू उपयोग के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वैयक्तिक घरेलू उपभोक्ता, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति योजनाओं, सशस्त्र बलों के प्रतिष्ठानों, कृषि कार्यकलापों और 10 घन मीटर प्रतिदिन से कम भू-जल निकासी करने वाले सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के उपयोग के लिए भू-जल निकासी के लिए एनओसी नहीं लेनी होगी। इससे प्रदेश के किसानों, आमजन तथा सूक्ष्म एवं लघु उद्यमियों को बड़ी राहत मिलेगी।
श्री गहलोत ने आगे कहा कि भू-जल निकासी की नवीन व्यवस्था तथा दिशा-निर्देशों के तहत किसानों तथा आमजन को शीघ्र लाभ मिले, इस उद्देश्य से पंचायती राज, विद्युत, गृह, जलदाय, भू-जल आदि विभागों द्वारा उचित दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे। यह भी निर्णय किया गया कि वर्षा जल के संरक्षण तथा पुनर्भरण के लिए जल संसाधन, जल ग्रहण, पंचायती राज, जलदाय तथा भू-जल विभाग उचित कदम उठाएंगे। साथ ही, प्रदेश के 17 जिलों के 38 ब्लॉक जहां भू-जल की स्थिति अधिक चिंताजनक है, वहां सुधार के सार्थक प्रयास किए जाएंगे।
वहीं दुसरे मामले में राज्य मंत्रिमण्डल ने जन सुनवाई की व्यवस्था को अधिक संवेदनशील और निचले स्तर तक प्रभावी बनाने के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली लागू करने का निर्णय किया है। इसके तहत कलस्टर, उपखण्ड तथा जिला स्तर पर आमजन की शिकायतों का प्रभावी निराकरण किया जाएगा। इस संबंध में विस्तृत रूपरेखा तैयार करने के लिए कैबिनेट सब कमेटी का गठन किया जाएगा, जो इसे शीघ्र लागू करवाना सुनिश्चित करेगी। मंत्रिमण्डल ने मनरेगा श्रमिकों को टास्क पूरा होने पर राज्य द्वारा घोेषित 220 रूपए प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी मिलने की मंशा जाहिर की। कैबिनेट ने इस प्रकार की व्यवस्था पर बल दिया, जिसमें मनरेगा श्रमिकों को टास्क पूरा करने पर न्यूनतम मजदूरी मिल सके।
मंत्रिमण्डल ने प्रदेश में आमजन को खनिज बजरी का सस्ता एवं सुगम विकल्प उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मैन्यूफेक्चर्ड सेण्ड (एम-सेण्ड) नीति का भी अनुमोदन किया है। इस नीति के तहत प्रदेश के खनन क्षेत्रों में उपलब्ध ओवरबर्डन डम्प्स की प्रचुर मात्रा का दक्षतापूर्वक उपयोग करते हुए खनन क्षेत्रों में पर्यावरण को संरक्षित करना, नदियों से बजरी की आपूर्ति में कमी तथा पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के साथ ही स्थानीय स्तर पर खनिज आधारित उद्योगों में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है।
अनुमोदित नीति के तहत एम-सेण्ड इकाई को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा तथा उसे रिप्स-2019 के तहत परिलाभ देय होंगे। इसके तहत खनन क्षेत्रों में उपलब्ध ओवरबर्डन डम्प्स को एम-सेण्ड के उत्पादन के लिए केप्टिव प्रयोजनार्थ 10 वर्ष की अवधि के लिए नीलामी से परमिट जारी किए जाएंगे। खनिज मेसेनरी स्टोन के खनन पट्टा आवंटन में एम-सेण्ड इकाई के लिए पृथक से प्लॉट आरक्षित किए जाकर केप्टिव प्रयोजनार्थ नीलाम किए जाएंगे। एम-सेण्ड के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले ओवरबर्डन पर देय डीएमएफटी की राशि में शत-प्रतिशत की छूट प्रदान की जाएगी। पूर्व में स्थापित एम-सेण्ड इकाइयां तथा क्रेशर इकाइयां भी एम-सेण्ड उत्पादन के लिए परमिट अथवा खनन पट्टा प्राप्त करने की पात्र होंगी।
इस नीति के तहत राज्य के सरकारी, अर्द्धसरकारी, स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थाएं एवं राज्य सरकार से वित्त पोेषित अन्य संगठनों द्वारा करवाए जाने वाले विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त की जानी वाली खनिज बजरी की मात्रा का न्यूनतम 25 प्रतिशत एम-सेण्ड का उपयोग अनिवार्य होगा, जो कि उपलब्धता के आधार पर 50 प्रतिशत बढ़ाया जा सकेगा।
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