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देश ऐसा होना चाहिए जो देश के हर नागरिक की प्रतिभा को बाहर लाए, उसकी प्रतिभा और creativity को एक समान अवसर दे- रहमत हुसैन

आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में बच्चों को संबोधित करते हुए रविन्द्रनाथ टैगोर की एक कहानी सुना डाली जो खेल और खिलौनों पर आधारित है, चलिए मोटीवेशनल कहानी है और क्यों न हो मोदी जी कि खुद की कहानी थोड़े ही है, रविन्द्रनाथ टैगोर जी कि कहानी है इस लिए तारीफ का हक बनता है।


Bhartiya Insan Party Rahmat Hussain

लेकिन मोदी जी ने पुरे कोरोना काल में ये क्यों नही सोचा कि खेल और खिलौनों से बचपन तो गुज़र जाएगा लेकिन शिक्षा और रोजगार के बिना जवानी और फिर बुढ़ापा कैसे कटेगा? मोदी जी कि साढ़े 6 साल के कार्यकाल में तो शिक्षा और खास कर रोजगार तो बुरी तरह से बर्बाद हो गया है करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं और करोड़ों बेरोजगार होने की कगार पर हैं। मोदी जी ने ये क्यों नही सोचा कि जिन बच्चों और खिलौनों की बात वह कर रहें हैं उन्हे खरीदने के लिए भी उन बच्चों के माँ बाप के पास पैसे होने चाहिए लेकिन बढ़ती बेरोजगारी और गिरती अर्थव्यवस्था में बच्चों को नए नए और ज़्यादा से ज़्यादा खिलौने दिलाना तो दुर की बात है माँ बाप अगर वक़्त पर अपने बच्चों को भर पेट खाना ही खिला दें तो यह बहुत बड़ा कमाल होगा।

Narendra Modi


बेरोजगारी और गिरती अर्थव्यवस्था ही सिर्फ कोई मुद्दा होती तो हम देश के नागरिक सरकार के साथ खड़े होतें और सरकार के काँधे से काँधा मिला कर बेरोजगारी और गिरती अर्थव्यवस्था को सँभाल लेते और न भी सँभाल पाते तो कोशिस तो कर ही सकते थें और कहतें हैं कि कोशिस करने वालों की कभी हार नही होती मगर नफरत और घृणा ऐसा जहर है जो मौजुदा समय में देश के लगभग हर नागरिक में रच बस चुका है, जी हाँ देश के लगभग हर नागरिक में चाहे वह भाजपा समर्थक हो या विपक्ष समर्थक सभी एक दुसरे से नफरत करने लगे हैं और नफरत को जाहिर करने से भी पीछे नही हटते हैं, इस नफरत का हालिया उदाहरण है ऊर्दु के मशहुर शायर राहत इंदौरी की मौत पर भाजपा समर्थक द्वारा खुशियाँ मनाया जाना तो वहीं विरोधियों द्वारा गृहमंत्री अमित शाह की मौत की खबर का बेसब्री से इंतज़ार करना और सोशल मिडिया पर उनके मौत से जुड़ी पोस्ट करना।


ये तो जनता के विचार थें लेकिन सवाल ये उठता है कि जनता के दिलों में ऐसे विचार आए ही क्यों?

क्योंकि सरकार ने खुद नफरत और घृणा के इस आग को हवा दी है, मिडिया भी कम ज़िम्मेदार नही है और ये सरकार और मिडिया की मिलीभगत ही है जो देश में देशभक़्त और देशद्रोही की जंग छिड़ गई, सरकार के खिलाफ बोलना अपराध हो गया, रासुका, CBI और ED का इस्तेमाल ऐसे होने लगा जैसे ये कोई कानुन या कानुनी संस्था नही बल्कि बच्चों का कोई खिलौना हो। गौरक्षा, लव जिहाद जैसे मुद्दों पर खुलेआम बेकसुर और मासुम लोगों को मार डाला गया लेकिन सरकार हत्यारों के खिलाफ कार्यवाई करने की जगह लोगों की फ्रीज़ में गौमाँस ढ़ुँढ़ती रही, जब ये सब मामला शांत हुआ तब कोरोना फैलाने के झूठे आरोप और प्रोपेगेंडा के तहत मुसलमानों को मिडिया और नेताओं द्वारा बदनाम किया जाता रहा लेकिन सरकार खामोश रही नतीजा ये हुआ की आर्थिक बहिष्कार की जंग छिड़ गई। जब दिल्ली, मुम्बई की उच्य न्यायालय ने तब्लीग़ जमात के लोगों को कोरोना फैलाने के झूठे आरोप से बरी कर दिया तो अब एक नया विवाद को जन्म देने की कोशिस की जा रही है UPSC जिहाद के नाम पर, UPSC जिहाद ये शब्द मैं नही समझता कि मुसलमानों को इससे फर्क पड़ता है क्योंकि ये आरोप मुसलमानों पर कम UPSC की Dignity पर ज़्यादा हमला करता है।


मुसलमानों ने लम्बे अर्से से आबादी के हिसाब से 14% आरक्षण की माँग की है लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सरकार आरक्षण देना तो दुर मिडिया के जरिए नए विवाद को जन्म देकर लगी लगाई नौकरी भी छीन लेना चाहती है। और ऐसा नही है कि ये नफरत ये घृणा सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ है बल्कि ये दलित और आदिवासी के साथ भी उतना ही व्यापक है जितना मुसलमानों के साथ।


केन्द्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वह ढ़ृढ़ संकल्प के साथ नफरत के इस खेल को हमेशा के लिए खत्म करे और देश के हर नागरिक को उसकी प्रतिभा और creativity के आधार पर बिना भेदभाव किए समान अवसर उपलब्ध कराए वर्ना जिस तरह से रविन्द्रनाथ टैगोर की कहानी में खिलौना तो रह गया खेल खत्म हो गया था उसी तरह से ये देश तो रह जाएगा लेकिन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्प्रद्धा में हम खत्म हो जाएगें।


लेखक भारतीय इंसान पार्टी के बिहार प्रदेश युवा सचिव रहमत हुसैन हैं और ये राय उनकी निजी राय है।

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